शनि साढ़ेसाती और शनि महादशा दूर करने के लिए देखिए श्री शनि चालीसा हिंदी लिरिक्स के साथ <br /><br />Don't forget to Share, Like & Comment on this video<br /><br />Subscribe Our Channel Artha : https://goo.gl/22PtcY<br /><br />जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।<br />दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥<br />जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।<br />करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥<br /> <br />जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥<br />चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥<br />परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥<br />कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥1॥<br />कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥<br />पिंगल, कृष्ो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥<br />सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥<br />जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥2॥<br /> <br />पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥<br />राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥<br />बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥<br />लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥3॥<br /> <br />रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥<br />दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥<br />नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥<br />हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥<br /> <br />भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥<br />विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥<br />हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥<br />तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥<br /> <br />श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥<br />तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥<br />पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥<br />कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥6॥<br /> <br />रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥<br />शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥<br />वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥<br />जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥7॥<br /> <br />गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥<br />गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥<br />जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥<br />जब आवहिं प्रभु स्वान सवा